रविवार, 27 फ़रवरी 2011

प्रेमचंद और सिनेमा

प्रेमचंद हिन्दी सिनेमा के सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्यकारों में से हैं। उनके देहांत के दो वर्षों बाद के सुब्रमण्यम ने 1938 में सेवासदन उपन्यास पर फ़िल्म बनाई जिसमें सुब्बालक्ष्मी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। प्रेमचंद की कुछ कहानियों पर और फ़िल्में भी बनी हैं, जैसे सत्यजीत राय की फ़िल्म शतरंज के खिलाड़ी प्रेमचंद ने मज़दूर शीर्षक फ़िल्म के लिए संवाद लिखे। फ़िल्म के स्वामियों ने कहानी की रूपरेखा तैयार की थी। फ़िल्म में एक देश-प्रेमी मिल-मालिक की कथा थी, किन्तु सेंसर को यह भी सहन न हो सका। फिर भी फ़िल्म का प्रदर्शन पंजाब , दिल्ली , उत्तर प्रदेश  और मध्य प्रदेश  में हुआ। फ़िल्म का मज़दूरों पर इतना असर हुआ कि पुलिस बुलानी पड़ गई। अंत में फ़िल्म के प्रदर्शन पर भारत सरकार ने रोक लगा दी। इस फ़िल्म में प्रेमचंद स्वयं भी कुछ क्षण के लिए रजतपट पर अवतीर्ण हुए। मज़दूरों और मालिकों के बीच एक संघर्ष में वे पंच की भूमिका में आए थे। एक लेख में प्रेमचंद ने सिनेमा की हालत पर अपना भरपूर रोष और असन्तोष व्यक्त किया है। वह साहित्य के ध्येय की तुलना करते हैं:
“साहित्य के भावों की जो उच्चता, भाषा की जो प्रोढ़ता और स्पष्टता, सुन्दरता की जो साधना होती है, वह हमें वहाँ नहीं मिलती। उनका उद्देश्य केवल पैसा कमाना है, सुरुचि या सुन्दरता से उन्हें कोई प्रयोजन नहीं। व्यापार, व्यापार है। व्यापार में भावुकता आई और व्यापार नष्ट हुआ। वहाँ तो जनता की रुचि पर निगाह रखनी पड़ती है, और चाहे संसार का संचालन देवताओं के ही हाथों में क्यों न हो, मनुष्य पर निम्न मनोवृत्तियों ही का राज्य होता है। जिस शौक़ से लोग ताड़ी और शराब पीतें हैं, उसके आधे शौक़ से दूध नहीं पीते। इसकी दवा निर्माता के पास नहीं। जब तक एक चीज़ की मांग है, वह बाज़ार में आएगी। कोई उसे रोक नहीं सकता। अभी वह ज़माना बहुत दूर है, जब सिनेमा और साहित्य का एक रूप होगा। लोक-रुचि जब इतनी परिष्कृत हो जायगी कि वह नीचे ले जाने वाली चीज़ों से घृणा करेगी, तभी सिनेमा में साहित्य की सुरुचि दिखाई पड़ सकती है।” 1977  में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित ओका ऊरी कथा से एक तेलुगु फ़िल्म बनाई जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगु फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। 1963 में गोदान और 1966 में ग़बन उपन्यास पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं। 1980 में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक निर्मला भी बहुत लोकप्रिय हुआ था। 

1 टिप्पणी:

  1. I m biggest fan of yours............u r the best Hindi novel writer & I think Shakespeare should be called 'MUNSHI PREMCHAND of English'

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