शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

पर्वत यात्रा


प्रा
त:काल मुं. गुलाबाजखां ने नमाज पढ़ी, कपड़े पहने और महरी से किराये की गाड़ी लाने को कहा। शीरी बेगम ने पूछाआज सबेरे-सबेरे कहां जाने का इरादा है?
     गुलजरा छोटे साहब को सलाम करने जाना है।
     शीरींतो पैदल क्यों नही चले जाते? कौन बड़ी दूर है।
     गुलजो बात तुम्हारी समझ मे न आये, उसमें जबान न खोला करो।
     शीरींपूछती तो हूं पैदल चले जाने मे क्या हरज है? गाड़ीवाला एक रूपये से कम न लेगा।
     गुल—(हंसकर) हुक्काम किराया नही देते। उसकी हिम्मत है कि मुझसे किराया मांगे! चालान करवा दूं।
     शीरींतुम तो हाकिम भी नही हो, तुम्हें वह क्यों ले जाने लगा!
     गुलहाकिम कैसे नही हूं? हाकिम के क्या सींग-पूंछ होती है, जो मेरे नही है? हाकिम को दोस्त हाकिम से कम रोब नही रखता। अहमक नही हूं कि सौ काम छोड़कर हुक्काम की सलामी बजाया करता हूं। यही इसी की बरकत है कि पुलिस माल दीवानी के अहलकार मुझे झुक-झुककर सलाम करते है, थानेदार ने कल जो सौगात भेजी थी, वह किसलिए? मै उनका दामाद तो नही हूं। सब मुझसे डरते है।
     इतनेमे महरी एक तांगा लाई। खां साहब ने फौरन साफा बांधा और चले। शीरी ने कहाअरे, तो पान तो खाते जाओं!
     गुलहां, लाओं हाथ मे मेहदीं भी लगा दो। अरी नेकबख्त, हुक्काम के सामने पान खाकर जाना बेअदबी है।
      शीरींआओगे कब तक? खाना तो यही खाओगें!
     गुलतुम मेरे खाने की फ्रिक न करना, शायद कुअर साहब के यहां चला जाऊ। कोई मुझे पूछे तो कहला देना, बड़े साहब से मिलने गये है।
     खां साहब आकर तांगे पर बैठे। तांगेवाले ने पूछाहुजूर, कहां चलू?
     गुलछोटे साहब के बंगले पर। सरकारी काम से जाना है।
तांगेहुजूर को वहां कितनी देर लगेगी?
     गुलयह मै कैसे बता दू, यह तो हो नही सकता कि साहब मुझसे बार-बार बैठने को कहे और मै उठकर चला आऊं। सरकारी काम है, न जाने कितनी देर लगे। बड़े अच्छे आदमी है बचारे। मजाल नही कि जो बात कह दूं, उससे इनकार कर दे। आदमी को गरूर न करना चाहिए। गरूर करना शैतान का  काम है। मगर कई  थानेदारों से जवाब तलब करचुका हूं। जिसको देखा कि रिआया को ईजा पहुचाता है, उसके पीछे पड़ जाता हूं।
     तांगेहुजूर पुलिस बड़ा अधेर करती है। जब देखो बेगार कभी आधी रत को बुला भेजा, कभी फजिर को। मरे जाते है हुजूर। उस पर हर मोड़ पर सिपाहियों को पैसे चाहिए। न दे, तो झूठा चालान कर दें।
     गुलसब जानता हूं जी, अपनी झोपड़ी मे बैठा सारी दुनिया की सेर किया करता हूं। वही बैठे-बैठे बदमाशों की खबर लिया करता हूं। देखो, तांगे को बंगले के भीतर न लेजाना। बाहर फाटक पर रोक देना।
     तांगेअच्छा हुजूर। अच्छा, अब देखिये वह सिपाह मोड़ पर खड़ा है।  पैसे के लिए हाथ फैलायेगा। न दूं तो ललकारेगा। मगर आज कसम कुरान की, टका-सा जवाब दे दूंगा। हुजूर बैठै है तो  क्या कर सकता है।
     गुलनही, नही, जरा-जरा सी बात पर मै इन छॉटे आदमियों से नही लड़ता। पैसे दे देना। मै तो पीछे से बचा की खबर लूंगा। मुअत्तल न करा दूं तो सही। दूबदू गाली-गलौजकरना, इन छोटे आदमियों के मुंह लगना मेरी आदत नही।
     तांगेवाले को भी यह बात पसन्द आई। मोड़ पर उसने सिपाही को पैसे दे दिए। तांगा साहब के बंगले पर पहुचां। खां साहब उतरे, और जिस तरह कोई शिकारी पैर दबा-दबाकर चौकन्नी आंखो से देखता हुआ चलता है, उसी तरह आप बंगले के बरामदे मे जाकर खड़े हो गए। बैरा बरामदे मे बैठा था। आपने उसे देखते ही सलाम किया।
     बैराहुजूर तो अंधेर करते है। सलाम हमको करना चाहिए और आप पहले ही हाथ उठा देते है।
     गुलअजी इन बातों मे क्या रक्खा है। खुदा की निगाह मे सब इन्सान बराबर है।
     बैराहुजूर को अल्लाह सलामत रक्खें, क्या बात कही है । हक तो यह है पर आदमी अपने को कितना भूल जाता है! यहां तो छोटे-छोटे अमले भी इंतजार करते रहते है कि यह हाथ उठावें। साहब को इत्तला कर दूं?
गुलआराम मे हो तो रहने दो, अभी ऐसी कोई जल्दी नहीं।
     बैराजी नही हुजूर हाजिरी पर से तो कभी के उठ चुके, कागज-वागज पढते होगें।
     गुलअब इसका तुम्हे अख्तियार है, जैसा मौका हो वैसा करो। मौका-महल पहचानना तुम्ही लोगो का काम है। क्या हुआ, तुम्हारी लड़की तो खैरियत से है न?
     बैराहां हुजूर, अब बहुत मजे मे हे। जब से हुजूर ने उसके घरवालों को बुलाकर डांट दिया है, तब से किसी ने चूं भी नही किया। लड़की हुजूर की जान-माल को दुआ देती है।
     बैरे ने साहब कोखां साहब की इत्तला की, और एक क्षण मे खां साहब जूते उतार कर साहब के सामने जा खड़े हुए और सलाम करके फर्श पर बैठ गए। साहब का नाम काटन था।
     काटनओ!ओ! यह आप क्या करता है, कुर्सी पर बैठिए, कुर्सी पर बैठिए।
     काटननही, नहीं आप हमारा दोस्त है।
     खांहुजूर चाहे मेरे को आफताब बना दें, पर मै तो अपनी हकीकत समझता हूं। बंदा उन लोगों मे नही है जो हुजूर के करम से चार हरफ पढ़कर जमीन पर पावं नही रखते और हुजूर लोगों की बराबरी करने लगते है।
     काटनखां साहब आप बहुत अच्छे आदमी हैं। हम आत के पांचवे दिन नैनीताल जा रहा है। वहां से लौटकर आपसे मुलाकात करेगा। आप तो कई बार नैनीताल गया होगा। अब तो सब रईस लोग वहां जाता है।
     खां साहब नैनीताल क्या, बरेली तक भी न गये थे, पर इस समय कैसे कह देते कि मै वहां कभी नहीं गया। साहब की नजरों से गिर न जाते! साहब समझते कि यह रईस नही, कोई चरकटा है। बोलेहां हुजूर कई बार हो आया हूं।
     काटनआप कई बार हो आया है? हम तो पहली दफा जाता है। सुना बहुत अच्छा शहर है।?
     खांबहुत बड़ा शहर है हुजूर, मगर कुछ ऐसा बड़ा भी नहीं है।
     काटनआप कहां ठहरता? वहां होटलो मे तो बहुत पैसा लगता है।
खांमेरी हुजूर न पूछें, कभी कहीं ठहर गया, कभी कहीं ठहर गया। हुजूर के अकबाल से सभी जगह दोस्त है।
काटनआप वहां किसी के नाम चिट्ठी दे सकता है कि मेरे ठहरने का बंदोबस्त कर दें। हम किफाायत से काम करना चाहता है। आप तो हर साल जाता है, हमारे साथ क्यों नहीं चलता।
     खां साहब बड़ी मुश्किल में फंसे। अब बचाव का कोई उपाय न था। कहना पड़ाजैसा हुजूर के साथ ही चला चलूंगा। मगर मुझे अभी जरा देर है हुजूर।
     काटनओ कुछ परवाह नहीं, हम आपके लिए एक हफ्ता ठहर सकता है। अच्छा सलाम। आज ही आप अपने दोस्त को जगह का इन्तजाम करने को लिख दें। आज के सातवें दिन हम और आप साथ चलेगा। हम आपको रेलवे स्टेशन पर मिलेगा।
     खां साहब ने सलाम किया, और बाहर निकले। तांगे वाले से कहाकुंअर शमशेर सिंह की कोठी पर चलो।


कुं
अर शमशेर सिंह .खानदानी रईस थे। उन्हें अभी तक अंग्रेजी रहन-सहन की कवा न लगी थी। दस बजे दिन तक सोना, फिर दोस्तों और मुसाहिबों के साथ गपशप करना, दो बजे खाना खाकर फिर सोना, शाम को चौक की हवा खाना और घर आकर बारह-एक बजे तक किसी परी का मुजरा देखना, यही उनकी दिनचर्या थी। दुनिया में क्या होता है, इसकी उन्हें कुछ खबर न होती थी। या हुई भी तो सुनी-सुनाई। खां साहब उनके दोस्तों में थे।
     जिस वक्त खां साहब कोठी में पहुंचे दस बजउ गये थे, कुंअर साहब बाहर निकल आये थे, मित्रगण जमा थे। खां साहब को देखते ही कुंअर साहब ने पूछाकहिए खां, साहब, किधर से?
     खां साहबजरा साहब से मिलने गया था। कई दिन बुला-बुला भेजा, मगर फुर्सत ही न मिलती थीं। आज उनका आदमी जबर्जस्ती खींच ले गया। क्या करता, जाना ही पड़ा। कहां तक बेरूखी करूं।
कुंअरयार, तुम न जाने अफसरों पर क्या जादू कर देते हो कि जो आता है तुम्हारा दम भरने लगता है। मुझे वह मन्त्र क्यों नहीं सिखा देते।
खांमुझे खुद ही नहीं मालूम कि क्यों हुक्काम मुझ पर इतने मेहरबान रहते हैं। आपकों यकीन न आवेगा, मेरी आवाज सुनते ही कमरे के दरवाजे पर आकर खड़े हो गये और ले जाकर अपनी खास कुर्सी पर बैठा दिया।
कुंअरअपनी खास कुर्सी पर?
खांहां साहब, हैरत में आ गया, मगर बैठना ही पड़ा। फिर सिगार मंगवाया, इलाइच, मेवे, चाय सभी कुछ आ गए। यों कहिए कि खासी दावत हो गई। यह मेहमानदारी देखकर मैं दंग रह गया।
कुंअरतो वह सब दोस्ती भी करना जानते हैं।
खांअजी दूसरा क्या खा के दोस्ती करेगा। अब हद हो गई कि मुझे अपने साथ नैनीताल चलने को मजबूर किया।
कुंअरसच!
खांकसम कुरान की। हैरान था कि क्या जबाब दूँ। मगर जब देखा कि किसी तरह नहीं मानते, तो वादा करना ही पड़ा। आज ही के दिन कूच है।
कुंअरक्यों यार, मैं भी चला चलूं तो क्या हरज हैं?
खांसुभानअल्लाह, इससे बढ़कर क्या बात होगी।
कुंअरभई, लोग, तरह-तरह की बातें करते हैं, इससे जाते डर लगता हैं। आप तो हो आये होंगे?
खांकई बार हो आया हूं। हां, इधर कई साल से नहीं गया।
कुंअरक्यों साहब, पहाड़ों पर चढ़ते-चढ़ते दम फूल जाता होगा?
राधाकान्त व्यास बोलेधर्मावतार, चढ़ने को तो किसी तरह चढ़ भी जाइए पर पहाड़ों का पानी ऐसा खराब होता है कि एक बार लग गया तो प्राण ही लेकर छोड़ता है। बदरीनाथ की यात्रा करने जितने यात्री जाते हैं, उनमें बहुत कम जीते लौटते हैं और संग्रहणी तो प्राय: सभी को ही जाती हे।
कुंअरहां, सूना तो हमने भी है कि पहाड़ों का पानी बहुत लगता है।
लाला सुखदयाल ने हामी भरीगोसाई जी ने भी तो पहाड़ के पानी की निन्दा की है
लागत अति पहाड़ का पानी।
बड़ दुख होत न जाई बखानी।।
खांतो यह इतने अंग्रेज वहां क्यों जाते है साहब? ये लोग अपने वक्त के लुकमान है। इनका कोई काम मसलहत से खाली नहीं होता? पहाड़ों की सैर से कोई फायदा न होता तो क्यो जातें, जरा यह तो साचिए।
व्यासयही सोच-सोचकर तो हमारे रईस अपना सर्वनाश कर रहे है। उनकी देखी-देखी धन का नाश, धर्म का नाश, बल का नाश होता चला जाता है, फिर भी हमारी आंखें नहीं खूलतीं।
लालामेरे पिता जी एक बार किसी अंग्रेज के साथ पहाड़ पर गये। वहां से लौटे तो मुझे नसीहत की कि खबरदार, कभी पहाड़ पर न जाना। आखिर कोई बात देखी होगी, जमी तो यह नसीहत की।
वाजिदहुजूर, खां साहब जाते हैं जाने दीजिए, आपको मैं जाने की सलाह न दूंगा। जरा सोचिए, कोसों की चढ़ाई, फिर रास्ता इतना खतरनाक कि खुदा की पनाह! जरा-सी पगड़डी और दोनों तरफ कोसों का खड्ड। नीचे देखा ओर थरथरा कर आदमी गिर पड़ा और जो कहीं पत्थरों में आग लग गई, तो चलिए वारा-न्यारा हो गया। जल-भुन के कबाब हो गये।
खांऔर जो लाखों आदमी पहाड़ पर रहते हैं?
वाजिदउनकी ओर बात है भाई साहब।
खांऔर बात कैसी? क्या वे आदमी नहीं हैं?
वाजिदलाखों आदमी दिन-भर हल जोतते हैं, फावड़े चलाते हैं, लकड़ी फाड़ते हैं, आप करेंगे? है आपमें इतनी दम? हुजूर उस चढ़ाई पर चढ़ सकते हैं?
खांक्यों नहीं टट्टुओं पर जाएंगे।
वाजिदटट्टुओं पर छ:कोस की चढ़ाई! होश की दवा कीजिए।
कुंअरटट्टुओं पर! भई हमसे न जाया जायगा। कहीं टट्टू भड़के तो कहीं के न रहे।
लालागिरे तो हड्डियां तक न मिले!
व्यासप्राण तक चूर-चूर हो जाय।
वाजिदखुदाबंद, एक जरासी ऊंचाई पर से आदमी देखता हैं, तो कांपने लगता है, न कि पहाड़ की चढ़ाई।
कुंआरवहां सड़कों पर इधर-उधर ईंट या पत्थर की मुंडेर नहीं बनी हुई हैं?
वाजिदखुदाबंद, मंजिलों के रास्तें में मुंडेर कैसी!
कुंअरआदमी का काम तो नहीं है।
लालासुना वहां घेघा निकल आता है।
कुंअरअरे भई यह बुरा रोग है। तब मै वहां जाने का नाम भी न लूंगा।
खांआप लाल साहब से पूछें कि साहब लोग जो वहां रहते हैं, उनको घेघा क्यों नहीं हो जाता?
लालावह लोग ब्रांडी पीते है। हम और आप उनकी बराबरी कर सकते हैं भला। फिर उनका अकबाल!
वाजिदमुझे तो यकीन नहीं आता कि खां साहब कभी नैनीताल गये हों। इस वक्त डींग मार रहे है। क्यों साहब, आप कितने दिन वहां रहे?
खांकोई चार बरस तक रहा था।
वाजिदआप वहां किस मुहल्ले में रहते थे?
खां(गड़बड़ा कर) जीमैं।
वाजिदअखिर आप चार बरस कहां रहे?
खांदेखिए याद आ जाय तो कहूं।
वाजिदजाइए भी। नैनीताल की सूरत तक तो देखी नहीं, गप हांक दी कि वहां चार बरस तक रहे!
खांअच्छा साहब, आप ही का कहना सही। मैं कभी नैनीताल नहीं गया। बस, अब तो आप खुश हुए।
कुंअरआखिर आप क्यों नहीं बताते कि नैनीताल में आप कहां ठहरे थे।
वाजिदकभ्री गए हों, तब न बताएं।
खांकह तो दिया कि मैं नहीं गया, चलिए छुट्टी हुई। अब आप फरमाइए कुंअर साहब, आपको चलना है या नहीं? ये लोग जो कहते हैं सब ठीक है। वहां घेघा निकल आता है, वहां का पानी इतना खराब है कि .खाना बिल्कुल नहीं हजम होता, वहां हर रोज दस-पांच आदमी खड्ड में गिरा करते है। अब आप क्या फैसला करते है? वहां जो मजे है वह यहां ख्वाब में भी नहीं मिल सकते। जिन हुक्काम के दरवाजे पर घंटों खड़े रहने पर भी मुलाकात नहीं होती, उनसे वहां चौबीसों घंटों खड़े रहने पर भी मुलाकात नहीं होती। उनसे वहां चौबीसों घंटों का साथ रहेगा। मिसों के साथ झील में सैर करने का मजा अगर मिल सकता है तो वहीं। अजी सैकड़ों अंग्रेजों से दोस्ती हो जाएगी। तीन महीने वहां रहकर आप इतना नाम हासिल कर सकते हैं जितना यहां जिन्दगी-भर भी न होगा। वस, और क्या कहूं।
कुअंरवहां बड़े-बड़े अंग्रेजों से मुलाकात हो जाएगी?
खांजनाब, दावतों के मारे आपको दम मारने की मोहलत न मिलेगी।
कुंअरजी तो चाहता है कि एक बार देख ही आएं।
खांतो बस तैयारी कीजिए।
सभाजन ने जब देखा कि कुंअर साहब नैनीताल जाने के लिए तैयार हो गए तो सब के सब हां में हां मिलाने लगे।
व्यासपर्वत-कंदराओं में कभी-कभी योगियों के दर्शन हो जाते है।
लालाहां साहब, सुना हैदो-दो सौ साल के योगी वहां मिलते है।
जिसकी ओरह एक बार आंख उठाकर देख लिया, उसे चारों पदार्थ मिल गये।
वाजिदमगर हुजूर चलें, तो इस ठाठ से चलें कि वहां के लोग भी कहें कि लखनऊ के कोई रईस आये है।
लालालक्ष्मी हथिनी को जरूर ले चलिए। वहां कभी किसी ने हाथी की सूरत काहे को देखी होगी। जब सरकार सवार होकर निकलेंगे और गंगा-जमुनी हौदा चमकेगा तो लोग दंग हो जाएंगे।
व्यासएक डंका भी हो, तो क्या पूछना।
कुंअरनहीं साहब, मेरी सलाह डंके की नहीं है। देश देखकर भेष बनाना चाहिए।
लालाहां, डंके की सलाह तो मेरी भी नहीं है। पर हाथी के गले में घंटा जरूर हो।
खांजब तक वहां किसी दोस्त को तार दे दीजिए कि एक पूरा बंगला ठीक कर रक्खे। छोटे साहब को भी उसी में ठहरा लेंगे।
कुंअरवह हमारे साथ क्यों ठहरने लगे। अफसर है।
खांउनको लाने का जिम्मा हमारा। खींच-खींचकर किसी न किसी तरह ले ही आऊंगा।
कुंअरअगर उनके साथ ठहरने का मौका मिले, तब तो मैं समझूं नैनीताल का जाना पारस हो गया।


क हफ्ता गुजर गया। सफर की तैयारियां हो गई। प्रात:काल काटन साहब का खत आया कि आप हमारे यहां आएंगे या मुझसे स्टेशन पर मिलेंगे। कुंअर साहब ने जवाब लिखबाया कि आप इधर ही आ जाइएगा। स्टेशन का रास्ता इसी तरफ से है। मैं तैयार रहूंगा। यह खत लिखवा कर कुंअर साहब अन्दर गए तो देखा कि उनकी बड़ी साली रामेश्वरी देवी बैठी हुई है। उन्हें देखकर बोलीक्या आप सचमुच नैनीताल जा रहे है?
कुंअरजी हां, आज रात की तैयारी है।
रामेश्वरीअरे! आज ही रात को! यह नहीं हो सकता। कल बच्चा का मुंडन है। मैं एक न मानूंगी। आप ही न होगे तो लोग आकर क्या करेंगे।
कुंअरतो आपने पहले ही क्यों न कहला दिया, पहले से मालूम होता तो मैं कल जाने का इरादा ही क्यों करता।
रामेश्वरीतो इसमें लाचारी की कौन-सी बात हैं, कल न सही दो-चार दिन बाद सही।
कुंअर साहब की पत्नी सुशीला देवी बोलीहां, और क्या, दो-चार दिन बाद ही जाना, क्या साइत टली है?
कुंअरआह! छोटे साहब से वादा कर चुका हूं, वह रात ही को मुझे लेने आएंगे। आखिर वह अपने दिल में क्या कहेंगे?
रामेश्वरीऐसे-ऐसे वादे हुआ ही करते हैं। छोटे साहब के हाथ कुछ बिक तो गये नहीं हो।
कुंअरमैं क्या कहूं कि कितना मजबूर हूं! बहुत लज्जित होना पड़ेगा।
रामेश्वरीतो गया जो कुछ है वह छोटे साहब ही हैं, मैं कुछ नहीं!
कुंअरआखिर साहब से क्या कहूं, कौन बहाना करूं?
रामेश्वरीकह दो कि हमारे भतीजे का मुंडन हैं, हम एक सप्ताह तक नहीं चल सकते। बस, छुट्टी हुई।
कुंअर(हंसकर) कितना आसान कर दिया है आपने इस समस्या कों ऐसा हो सकता है कहीं। कहीं मुंह दिखाने लायक न रहूंगा।
सुशीलाकयों, हो सकने को क्या हुआ? तुम उसके गुलाम तो नहीं हो?
कुंअरतुम लोग बाहर तो निकलती-पैठती नहीं हो, तुम्हें क्या मालूम कि अंग्रेजों के विचार कैसे होते है।
रामेश्वरीअरे भगवान्! आखिर उसके कोई लड़का-बाला है, या निगोड़ नाठा है। त्योहार और व्योहार हिन्दू-मुसलमान सबके यहां होते है।
कुंअरभई हमसे कुछ करते-धरते नहीं बनता।
रामश्वरीहमने कह दिया, हम जाने नहीं देगे। अगर तुम चले गये तो मुझे बड़ा रंज होगा। तुम्हीं लोगों से तो महफिल की शोभा होगी और अपना कौन बैठा हुआ है।
कुंअरअब तो साहब को लिख भेजने का भी मौका नहीं है। वह दफ्तर चले गये होंगे। मेरा सब असबाब बंध चुका है। नौकरों को पेशगी रूपया दे चुका कि चलने की तैयारी करें। अब कैसे रूक सकता हूँ!
रामेश्वरीकुछ भी हो, जाने न पाओंगे।
सुशीलादो-चार दिन बाद जाने में ऐसी कौन-सी बड़ी हानि हुई जाती हैं? वहां कौन लड्डू धरे हुए है?
कुंअर साहब बड़े धर्म-संकट में पड़े, अगर नहीं जाते तो छोटे साहब से झूठे पड़ते है। वह अपने दिल में कहेंगें कि अच्छे बेहुदे आदमी के साथ पाला पड़ा। अगर जाते है तो स्त्री से बिगाड़ होती हैं, साली मुंह फुलाती है। इसी चक्कर में पड़े हुए बाहर आये तो मियां वाजिद बोलेहुजूर इस वक्त कुछ उदास मालूम होते है।
व्यासमुद्रा तेजहीन हो गई है।
कुंअरभई, कुछ न पूछो, बड़े सकंट में हूं।
वाजिदक्या हुआ हुजूर, कुछ फरमाइए तो?
कुंअरयह भी एक विचित्र ही देश है।
व्यासधर्मावतार, प्राचीन काल से यह ऋषियों की तपोभूमि है।
लालाक्या कहना है, संसार में ऐसा देश दूसरा नहीं।
कुंअरजी हां, आप जैसे गौखे और किस देश में होंगे। बुद्धि तो हम लोगों को भी छू नहीं गई।
वाजिदहुजूर, अक्ल के पीछे तो हम लोग लट्ठ लिए फिरते है।
व्यासधर्मावतार, कुछ कहते नहीं बनता। बड़ी हीन दशा है।
कुंअरनैनीताल जाने को तैयार था। अब बड़ी साली कहती है कि मेरे बच्चे का मुंडन है, मैं न जाने दूंगी। चले जाओंगे तो मुझे रंज होगा। बतलाइए, अब क्या करूं। ऐसी मूर्खता और कहां देखने में आएगी। पूछो मुंडन नाई करेगा, नाच-तमाशा देखने वालों की शहर में कमी नहीं, एक मैं न हूंगा न सही, मगर उनको कौन समझाये।
व्यासदीनबन्धु, नारी-हठ तो लोक प्रसिद्ध ही है।
कुंअरअब यह सोचिए कि छोटे साहब से क्या बहाना किया जायगा।
वाजिदबड़ा नाजुक मुआमला आ पड़ा हुजूर।
लालाहाकिम का नाराज हो जाना बुरा है।
वाजिदहाकिम मिट्टी का भी हो, फिर भी हाकिम ही है।
कुंअरमैं तो बड़ी मुसीबत में फंस गया।
लालाहुजूर, अब बाहर न बैठे। मेरी तो यही सलाह है। जो कुछ सिर पर पड़ेगी, हम ओढ़ लेंगे।
वाजिदअजी, पसीने की जगह खून गिरा देंगे। नमक खाया है कि दिल्लगी है।
लालाहां, मुझे भी यही मुनासिब मालूम होता है। आप लोग कह दीजिए, बीमार हो गए है।
अभी यही बातें हो रही थी कि खिदमतगार ने आकर हांफते हुए कहासरकार, कोऊ आया है, तौन सरकार का बुलावत है।
कुंअरकौन है पूछा नहीं?
खिद.कोऊ रंगरेज है सरकार, लाला-लाल मुंह हैं, घोड़ा पर सवार है।
कुंअरकहीं छोटे साहब तो नहीं हैं, भई मैं तो भीतर जाता हूं। अब आबरू तुम्हारे हाथ है।
कुंअर साहब ने तो भीतर घुसकर दरवाजा बन्द कर लिया। वाजिदअली ने खिड़की से झांकर देखा, तो छोटे साहब खड़े थे। हाथ-पांव फूल गये। अब साहब के सामने कौन जाय? किसी की हिम्मत नहीं पड़ती। एक दूसरे को ठेल रहा है।
लालाबढ़ जाओं वाजिदअली। देखो कया कहते हैं?
वाजिदआप ही क्यों नहीं चले जाते?
लालाआदमी ही तो वह भी हैं, कुछ खा तो न जाएगा।
वाजिदतो चले क्यों नहीं जाते।
काटन साहब दो-तीन मिनट खड़े रहे। अब यहाँ से कोई न निकला तो बिगड़कर बोलेयहां कौन आदमी है? कुंअर साहब से बोलो, काटन साहब खड़ा है।
मियां वाजिद बौखलाये हुए आगे बढ़े और हाथ बांधकर बोलेखुदावंद, कुंअर साहब ने आज बहुत देर से खाना खाया, तो तबियत कुछ भारी हो गई है। इस वक्त आराम में हैं, बाहर नहीं आ सकते।
काटनओह! तुम यह क्या बोलता है? वह तो हमारे साथ नैनीताल जाने वाला था। उसने हमको खत लिखा था।
वाजिदहां, हुजूर, जाने वाले तो थे, पर बीमार हो गये।
काटनबहुंत रंज हुआ।
वाजिदहुजूर, इत्तफाक है।
काटनहमको बहुत अफसोस है। कुंअर साहब से जाकर बोलो, हम उनको देखना मांगता है।
वाजिदहुजूर, बाहर नहीं आ सकते।
काटनकुछ परवाह नहीं, हम अन्दर जाकर देखेंगा।
कुंअर साहब दरवाजे से चिमटे हुए काटन साहब की बातें सुन रहे थे। नीचे की सांस नीचे थी, ऊपर की ऊपर। काटन साहब को घोड़े से उतरकर दरवाजे की तरफ आते देखा, तो गिरते-पड़ते दौड़े और सुशीला से बोलेदुष्ट मुझे देखने घर में आ रहा है। मैं चारपाई पर ले जाता हूं, चटपट लिहाफ निकलवाओं और मुझे ओढ़ा दो। दस-पांच शीशियां लाकर इस गोलमेज पर रखवा दो।
इतने में वाजिदअली ने द्वार खटखटाकर कहामहरी, दरवाजा खोल दो, साहब बहादुर कुंअर साहब को देखना चाहते है। सुशीला ने लिहाफ मांगा, पर गर्मी के दिन थे, जोड़े के कपड़े सन्दूकों में बन्द पड़ें थे। चटपट सन्दूक खोलकर दो-तीन मोटे-मोटे लिहाफ लाकर कुंअर साहब को ओढा दिये। फिर आलमारी से कई शीशियां और कई बोतल निकालकर मेज पर चुन दिये और महरी से कहाजाकर किवाड़ खोल दो, मैं ऊपर चली जाती हूं।
काटन साहब ज्यों ही कमरे में पहुंचे, कुंअर साहब ने लिहाफ से मुंह निकला लिया और कराहते हुए बोलेबड़ा कष्ट है हुजूर। सारा शरीर फुंका जाता है।
काटनआप दोपहर तक तो अच्छा था, खां साहब हमसे कहता था कि आप तैयार हैं, कहां दरद है?
कुंअरहुजूर पेट में बहुंत दर्द हैं। बस, यही मालूम होता है कि दम निकल जायेगा।
काटनहम जाकर सिविल सर्जन को भेज देता है। वह पेट का दर्द अभी अच्छा कर देगा। आप घबरायें नहीं, सिविल सर्जन हमारा दोस्त है।
काटन चला गया तो कुंअर साहब फिर बाहर आ बैठे। रोजा बख्शाने गये थे, नमाज गले पड़ी। अब यह फिक्र पैदा हुई कि सिविल सर्जन को कैसे टाला जाय।
कुंअरभई, यह तो नई बला गले पड़ी।
वाजिदकोई जाकर खां साहब को बुला लाओं। कहना, अभी चलिए ऐसा न हो कि वह देर करें और सिविल सर्जन यहां सिर पर सवार हो जाय।
लालासिविल सर्जन की फीस भी बहुत होगी?
कुंअरअजी तुम्हें फीस की पड़ी है, यहां जान आफत में है। अगर सौ दो सौ देकर गला छूट जाय तो अपने को भाग्यवान समझूं।
वाजिदअली ने फिटन तैयार कराई और खां साहब के घर पहुंचें देखा ते वह असबाब बंधवा रहे थे। उनसे सारा किस्सा बयान किया और कहाअभी चलिए। आपकों बुलाया है।
खांमामला बहुत टेढ़ा है। बड़ी दौड़-धूप करनी पड़ेगी। कसम खुदा की, तुम सबके सब गर्दन मार देने के लायक हो। जरा-सी देर के लिए मैं टल क्या गया कि सारा खेल ही बिगाड़ दिया।
वाजिदखां साहब, हमसे तो उड़िए नहीं। कुंअर साहब बौखलाये हुए हैं। दो-चार सौ  का वारा-न्यारा है। चलकर सिविल सर्जन को मना कर दीजिए।
खांचलो, शायद कोई तरकीब सूझ जाये।
दोनों आदमी सिविल सर्जन की तरफ चले। वहां मालूम हुआ कि साहब कुंअर साहब के मकान पर गये है। फौरन फिटन घुमा दी, और कुंअर साहब की कोठी पर पहुंचे। देखा तो सर्जन साहब एनेमा लिये हुए कुंअर चाहब की चारपाई के सामने बैठे हुए है।
खाँमैं तो हुजूर कें बंगले से चला आ रहा हूँ। कुअर साहब का क्या हाल है?
डाक्टरपेट मे दर्द है। अभी पिचकारी लगाने से अच्छा हो जायेगा।
कुंअरहुजूर, अब दर्द बिल्कुल नहीं है। मुझे कभी-कभी यह मर्ज हो जाता है और आप ही आप अच्छा हो जाता है।
डाक्टर, आप डरता है। डरने की कोई बात नहीं हे। आप एक मिनट में अच्छा हो जाएगा।
कुंअरहुजूर, मैं बिल्कुल अच्छा हूं। अब कोई शिकायत नहीं है।
डाक्टरडरने की कोई बात नहीं, यह सब आदमी यहां से हट जाय, हम एक मिनट में अच्छा कर देगा।
खां साहब ने डाक्टर से काम में कहाहुजूर अपनी रात की डबल फीस और गाड़ी का किराया लेगर चले जाएं, इन रईसों के फेर में न पड़ें, यह लोग बारहों महीने इसी तरह बीमार रहते है। एक हफ्रते तक आकर देख लिया कीजिए।
डाक्टर साहब की समझ में यह बात आ गई। कल फिर आने का वादा करके चले गये। लोगों के सिर से बला टली। खां साहब की कारगुजारी की तारीफ होने लगी!
कुंअरखां साहब आप बड़े वक्त पर काम आये। जिन्दगी-भर आपका एहसान मानूंगा।
खांजनाब, दो सौ चटाने पड़े। कहता था छोटे साहब का हुक्म हैं। मैं बिला पिचकारी लगाये न जाऊंगा। अंग्रेजों का हाल तो आप जानते है। बात के पक्के होते है।
     कुंअरयह भी कह दिया न कि छोटे साहब को मेरी बीमारी की इत्तला कर दें और कह दें, वह सफर करने लायक नहीं है।
     खांहां साहब, और रूपये दिये किसलिए, क्या मेरा कोई रिश्तेदार था? मगर छोटे साहब को होगी बड़ी तकलीफ। बेचारे ने आपको बंगले के आसरे पर होटल का इन्तजाम भी न किया था। मामला बेढब हुआ।
कुंअरतो भई, मैं क्या करता, आप ही सोचिए।
खांयह चाल उल्टी पड़ी। जिस वक्त काटन साहबयहां आये थे, आपको उनसे मिलना चाहिए था। साफ कह देते, आज एक सख्त जरूरत से रुकना पड़ा। लेकिन खैर, मैं साहब के साथ रहुंगा, कोई न कोई इंतजाम हो ही जायगा।
     कुंअर क्या अभी आप जाने का इरादा कर ही रहे है! हलफ से कहता हूं, मैं आपको न जाने दूंगा, यहां न जाने कैसी पडें, मियां वाजिद देखों, आपकों घर कहला दो, बारह न जायेंगे।
     खांआप अपने साथ मुझे भी डुबाना चाहते है। छोटे साहब आपसे नाराज भी हो जाएं तो क्या कर लेंगे।, लेकिन मुझसे नाराज हो गये, तो खराब ही कर डालेंगे।
कुंअरजब तक हम जिन्दा है भाई साहब, आपको कोई तिरछी नजर से नहीं देख सकता। जाकर छोटे साहब से कहिए, कुंअर साहब की हालत अच्दी नहीं, मैं अब नहीं जा सकता। इसमें मेरी तरफ से भी उनका दिल साफ हो जाएगा और आपकी दोस्ती देखकर आपकी और इज्जत करने लगेगा।
     खांअब वह इज्जत करें या न करें, जब आप इतना इसरार कर रहे है तो मैं भी इतना बे-मुरौवत नहीं हूं कि आपको छोड़कर चला जाऊं। यह तो हो ही नहीं सकता। जरा देर के लिए घर चला गया, उसका तो इतना तावान देना पड़ां नैनीताल चला जाऊं तो शायद कोई आपको उठा ही ले जाय।
     कुंअरमजे से दो-चार दिन जल्से देखेंगें, नैनीताल में यह मजे कहां मिलते। व्यास जी, अब तो यों नहीं बेठा जाता। देखिए, आपके भण्डार में कुछ हैं, दो-चार बोतलें निकालिए, कुछ रंग जमे।*
—‘माधुरी, अप्रैल, १९२९

* रतननाथ सरशर-कृत सैरे कोहसार के आधार पर।

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